Farida

Add To collaction

लेखनी कविता -कविता संग्रह और ही राग

और ही राग


टेबिल टाप पर तुम्हारी उँगलियाँ
पड़ी हुई थीं निर्जीव
और मैं प्रतीक्षा में थी दम साधे
कि अब वे हरकत करेंगी-

धिनक धिनक धिन्... धिनक धिन्...
रच दोगे तुम एक अनोखा संगीत
जिसकी लय पर मैं थिरकने लगूंगी
धिनक धिनक्... धिन्... ता...

पर वे थीं कि हिले-डुले बिना
वैसी ही थमी रहीं उसी जगह अचल
गहरे मौन का या निष्प्रभ जीवन का
एक और ही राग अलापती हुईं
जिसमें डूबती–डूबती मैं जा पहुँची अतल में ।

   1
0 Comments